शनि से जुड़कर लाभ उठाने का अवसर शनि जयंती एवं वटसावित्री व्रत 6 जून गुरुवार
कर्क वृश्चिक राशि वालों पर शनि की ढैया मकर कुंभ मीन राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती और मेष सिंह वृश्चिक राशि पर शनि की दृष्टि।
हिंदू धर्म में शनि देव का महत्वपूर्ण स्थान है. शनि देव की पूजा बहुत शुभ और कल्याणकारी मानी जाती है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है, मान्यता है कि शनिदेव कर्मों के आधार पर सभी को कर्मफल प्रदान करते हैं, इसलिए शनिदेव को कर्मफल दाता के नाम से भी जाना जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनिदेव की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के साथ जीवन में कभी अन्याय की घटना नहीं होती है. शनिदेव की कृपा से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं और सभी प्रकार के रोग या शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।
शनि जयंती के दिन मेष कर्क सिंह वृश्चिक मकर कुंभ मीन राशि वाले व्यक्ति निम्नलिखित उपाय करके शनि देव को प्रसन्न कर सकते हैं।
शनि जयंती के दिन काले रंग की चिड़िया खरीदकर उसे दोनों हाथों से आसमान में उड़ा दें। आपकी दुख-तकलीफें दूर हो जाएंगी ।शनि जयंती के दिन लोहे का त्रिशूल महाकाल शिव, महाकाल भैरव या महाकाली मंदिर में अर्पित करें। शनि दोष के कारण विवाह में विलंब हो रहा हो, तो 250 ग्राम काली राई, नए काले कपड़े में बांधकर पीपल के पेड़ की जड़ में रख आएं और शीघ्र विवाह की प्रार्थना करें।
पुराना जूता शनि जयंती के दिन चौराहे पर रखें। आर्थिक वृद्धि के लिए आप सदैव शनिवार के दिन गेंहू पिसवाएं और गेहूं में कुछ काले चने भी मिला दें। शनि जयंती को 10 बादाम लेकर हनुमान मंदिर में जाएं। 5 बादाम वहां रख दें और 5 बादाम घर लाकर किसी लाल वस्त्र में बांधकर धन स्थान पर रख दें। शनि जयंती के दिन बंदरों को काले चने, गुड़, केला खिलाएं। शनि जयंती पर सरसों के तेल का छाया पात्र दान करें। बहते पानी में नारियल सिर के ऊपर से घुमा कर विसर्जित करें। शनि जयंती को काले उड़द पीसकर उसके आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। शनि जयंती को आक के पौधे पर 7 लोहे की कीलें चढ़ाएं। काले घोड़े की नाल या नाव की कील से बनी लोहे की अंगूठी मध्यमा उंगली में शनि जयंती को सूर्यस्त के समय पहनें। शमशान घाट में लकड़ी का दान करें। शनि जयंती को सरसों का तेल हाथ और पैरों के नाखूनों पर लगाएं। शनि जयंती से आरंभ कर चीटिंयों को 7 शनिवार काले तिल, आटा, शक्कर मिलाकर खिलाएं। शनि जयंती की शाम पीपल के पेड़ के नीचे तिल या सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
शनि की ढैया या साढ़ेसाती से ग्रसित व्यक्ति को हनुमान चालीसा का सुबह-शाम जप करना चाहिए।
पित्र दोष के लिए उपाय
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष उत्पन्न हो जाता है तो जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ऐसे में पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए शनि जयंती के दिन से लेकर प्रतिदिन पीपल में जल अर्पित करें. इसके साथ ही काले रंग के कुत्ते को रोटी खिलाएं. ऐसा करने से जल्द ही पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
पितृ दोष के साथ-साथ शनिदोष की शांति के लिए पीपल का एक पत्ता लें. इसके बाद उसे गंगाजल से साफ करें और उस पर केसर से ‘श्रीं’ लिखकर अपने पर्स में रख लें. ऐसा प्रत्येक शनिवार को करें पुराना पत्ता पीपल के पेड़ में चढ़ा दे। शनि अमावस्या के दिन से प्रत्येक अमावस्या दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए। पितृस्तोत्र या पितृसूक्त का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर ‘ॐ पितृभ्य: नम:’ का मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें।
वटसावित्री का व्रत और उसके महत्व
वटसावित्री व्रत 6 जून गुरुवार को मनाया जाएगा संयोग से उस दिन रोहिणी नक्षत्र भी रहेगा जो इसे और शुभ बनायेगा। इस व्रत को न केवल पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है, बल्कि यह महिलाओं को आत्मनिर्भर, धर्मनिष्ठ और पतिव्रता गुणों को अपनाने की प्रेरणा भी देता है। उपवास शरीर और मन को शुद्ध करता है और ईश्वर के प्रति भक्ति भाव प्रकट करता है। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री, राजकुमार सत्यवान की पत्नी थीं। सावित्री अपने पति के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण के लिए जानी जाती थीं। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तो सावित्री ने अपने धर्म, बुद्धि और पति के प्रति प्रेम के बल पर यमराज से वाद-विवाद किया और अंत में अपने पति का जीवन वापस प्राप्त करने में सफल रहीं। वट सावित्री व्रत पतिव्रता धर्म के सम्मान में मनाया जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं को अपने पति की दीर्घायु, सुखी वैवाहिक जीवन और पतिव्रता धर्म का पालन करने की प्रेरणा देता है।
कुंवारी लड़कियां भी वट सावित्री व्रत रख सकती हैं?
यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं द्वारा रखा जाता है, लेकिन कुछ स्थानों पर कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। हालांकि, इसकी विधि और परंपराएं सुहागिन महिलाओं के व्रत से थोड़ी भिन्न होती हैं।
क्या व्रत के दिन पानी पीना मना है?
कुछ परंपराओं में व्रत का निर्जला (बिना पानी के) रखने पर जोर दिया जाता है, जबकि कुछ में शाम को भोजन से पहले कम मात्रा में फलाहार और जल ग्रहण की अनुमति होती है। अपनी शारीरिक क्षमता और स्थानीय परंपराओं के अनुसार आप निर्णय ले सकते हैं।
व्रत के बाद किन चीजों का भोजन करना चाहिए?
व्रत के बाद हल्का और पौष्टिक भोजन ग्रहण करना चाहिए। फलों, सब्जियों, दूध-दही या खिचड़ी का सेवन करना अच्छा होता है। मांसाहार और तेल-मसाले वाले भोजन से कुछ समय तक बचना चाहिए।
वट सावित्री व्रत के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
व्रत के दौरान मन की पवित्रता और सकारात्मक विचारों का महत्व है। क्रोध, ईर्ष्या या नकारात्मक विचारों से बचना चाहिए। घर-परिवार में पति के साथ संवाद और मेलजोल को बढ़ावा दें।
वट सावित्री व्रत के उपवास से क्या लाभ हैं?
वट सावित्री व्रत का उपवास न सिर्फ पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है, बल्कि इसके कई अन्य लाभ भी होते हैं, निर्जला व्रत रखने से मन और शरीर दोनों का शुद्धिकरण होता है। क्रोध, लोभ, मोह जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहने और सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा मिलता है व्रत का संकल्प लेना और उसे दृढ़ता से पूरा करना आत्मबल को मजबूत बनाता है। संकल्प शक्ति बढ़ती है और जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने का हौसला मिलता है। ईश्वर के प्रति श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करने का यह एक उत्तम तरीका है। व्रत रखने से धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति जागरूकता बढ़ती है और जीवन में धर्म का महत्व समझ आता है।