श्रावण मास का आरंभ 22 अद्भुत योगों का संयोग बन रहा श्रावण मास में

सोमवार का संयोग : श्रावण मास इस बार सोमवार से ही प्रारंभ हो रहा है। यह शिवजी का ही वार है।*

प्रीति योग : प्रीति योग सदा मंगल करने वाला और भाग्य को बढ़ाने वाला होता है। इस योग में सभी कार्य पूर्ण होते हैं।*

आयुष्मान योग : सावन के पहले सोमवार को यह योग रहेगा। इस योग में किया गया कार्य लंबे समय तक शुभ फलदायक होता है या जीवन भर सुख देने वाला होता है।*

नवम पंचम योग : चंद्रमा और मंगल एक दूसरे से नौवें और पांचवे भाव में मौजूद रहेंगे, जिसके चलते नवम पंचम राजयोग का निर्माण हो रहा है। इस योग में शिव पूजा करने से कुंडली के सभी ग्रह दोष दूर होते हैं।*

शश राजयोग : इस दिन शनिदेव अपनी स्वयं की राशि कुंभ में विराजमान रहेंगे जिसके चलते शश नामक राजयोग का निर्माण हो रहा है। इस योग में भगवान शिव की पूजा अर्चना करने से शनि दोष दूर होते हैं।*

सर्वार्थ सिद्धि योग : सावन के पहले सोमवार को सर्वार्थ सिद्ध नामक शुभ योग का निर्माण भी हो रहा है। इस योग में शिव पूजा या अन्य कोई कार्य करने से वह सफल और सिद्ध होता है।*

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान् शिव ने समुद्रमंथन से निकले हलाहल विष का पान किया, जिसके कारण उनके कंठ में जलन(पीड़ा) उत्पन्न होने लगी । इस जलन को शांत करने के लिए सभी देवी-देवता मिलकर उनका जलाभिषेक करने लगे । जिसके पश्चात् हलाहल विष से हो रही जलन का प्रभाव कम होने लगा और वे अतिप्रसन्न हुए । तभी से श्रावण के मास में भगवान् शिव का जलाभिषेक किया जाता है ।

एक मान्यता ये भी है कि श्रावण मास में देवी पार्वती ने अपनी तपस्या से भगवान् शिव को प्रसन्न किया और उन्हें पति के रूप में प्राप्त किया था । इसलिए भगवान् शिव को श्रावण मास प्रिय है।*

श्रावण मास में रुद्राभिषेक किससे करें और उससे क्या लाभ होगा।*

यदि आपको क्रोध अधिक आता है तो आप श्रावणमास में शिव मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग का जलाभिषेक करें । इससे व्यक्ति का स्वभाव शांत होता है और व्यवहार में प्रेम-सौहार्द की भावना अविभूत होती है।

श्रावणमास में शहद से शिवलिंग का अभिषेक करने पर वाणी में मिठास आती है। लक्ष्मी की प्राप्ति होती है जिससे परिवार तथा समाज में प्रेम की भावना व्याप्त होती है।
शिवलिंग का दही से अभिषेक करने पर कार्य में आ रही अड़चनें दूर होती है और बिगड़ते हुए कार्य सिद्ध होते हैं।

यदि आप चाहते हैं कि आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो तो आप श्रावण मास में प्रतिदिन 21 बिल्वपत्र लेकर उन पर चंदन से “ॐ नमः शिवाय” लिखें और उन्हें शिवलिंग पर चढ़ायें । ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी ।

यदि आपके विवाह में अड़चनें आ रही है तो आप श्रावणमास में शिवलिंग पर दूध में केसर मिलाकर अभिषेक करने से विवाह शीघ्र होता है । कुंवारी कन्याएं सोलह सोमवार का उपवास रख सकती हैं ।

यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति में कठिनाई हो रही है तो श्रावण मास में गाय के दुग्ध से शिवलिंग का दुग्धाभिषेक अवश्य करें । ऐसा करने से भगवान् शिव की कृपा प्राप्ति से संतान की प्राप्ति होती है तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।

जो मनुष्य किसी भी प्रकार के दुख से पीड़ित है या फिर उसे किसी रोग से मुक्ति नहीं मिल रही है तो गंगाजल से अथवा कुशा के रस से भगवान् के लिंग स्वरूप का जलाभिषेक करना चाहिए । ऐसा करने से व्यक्ति को सभी रोगों से मुक्ति मिलेगी । साथ ही सुहागन स्त्रियां इस दिन अपने पति और पुत्र की लम्बी आयु के लिए उपवास रख सकती हैं ।

*श्रावण मास में ये कार्य अवश्य करें।

धतूरा और भांग भगवान श‌िव को अर्प‌ित करें। श‌िवल‌िंग न‌ियम‌ित इसकी पूजा करें। दूध दान करें। शाम के समय भगवान श‌िव की आरती पूजा करें। इस महीने में अगर घर के दरवाजे पर सांड आ आए तो उसे कुछ खाने को दें।*

श्रावण मास में यह कार्य न करें ।

शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए कांसे के बर्तन में नहीं खाना चाहिए। पूजा के समय में शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं सावन के महीने में दूध का सेवन अच्छा नहीं होता है। सावन के महीने में द‌िन के समय नहीं सोना चाह‌िए। सावन के महीने में बैंगन और पत्तेदार सब्जियां नहीं खाना चाह‌िए। बैंगन को अशुद्ध माना गया है। भगवान शिव को केतकी का फूल भूल कर भी न चढ़ाएं।*

रुद्राभिषेक के आश्चर्यजनक लाभ

जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है। असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें। भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें। धनवृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें। तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है। पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान् संतान की प्राप्ति होती है। ज्वर की शांति हेतु कुशोदक या गंगाजल से रुद्राभिषेक करें। सहस्रनाम मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश की वृद्धि होती है। प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है ।सक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जड़ बुद्धि वाला भी विद्वान् हो जाता है। सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यश की प्राप्ति होती है । पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें। गोदुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।

Related posts

Leave a Comment